उदयसिंह यादव

शाहाबाद (मातृभूमि न्यूज)। उपखंड क्षेत्र में भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबन्धन का त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बन्धन बांधती है, जिसे राखी कहते हैं। यह एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावणमास की पूर्णिमा के दिन हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है, रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है।

रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाईयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। रक्षाबंधन के दिन बाजार मे कई सारे उपहार बिकते है, उपहार और नए कपड़े खरीदने के लिए बाज़ार मे लोगों की सुबह से शाम तक भीड होती है। घर मे मेहमानों का आना जाना रहता है। रक्षाबंधन के दिन भाई अपने बहन को राखी के बदले कुछ उपहार देते है। रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जो भाई बहन के प्यार को और मजबूत बनाता है, इस त्योहार के दिन सभी परिवार एक हो जाते है और राखी, उपहार और मिठाई देकर अपना प्यार साझा करते है।

सलूनो, तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। निष्कर्ष: रक्षा सूत्र कोई भी किसी को भी बांध सकता है, उसकी रक्षा के लिए और जो बांध रहा है उसकी रक्षा के लिए भी। लेकिन वर्तमान में प्रचलन से यह परंपरा अब भाई और बहन के बीच ही सिमट कर रह गई है यह अच्छा भी है। भाई को अपनी बहन की रक्षा का वचन देना चाहिए और बहन भी भाई की लंबी आयु की कामना करें। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षाबंधन का त्योहार हर साल सावन के महीने की पूर्णिमा को धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं उन्हें मिठाई खिलाती हैं वहीं दूसरी ओर भाइयों से ये अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी बहनों की रक्षा करें उन्हें दुनिया की सभी बुराइयों से बचाएं। ये त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है लोग बहुत दिनों पहले से ही इस त्योहार की तैयारियां शुरु कर देते हैं। बाजार रंग-बिंरगी राखियों से सजे नजर आते हैं। लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि ये त्योहार मनाया क्यों जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार राजसूय यज्ञ के लिए पांडवों ने भगवान कृष्ण को आमंत्रित किया। उनके मेहमानों में से एक श्री कृष्ण के चचेरे भाई शिशुपाल भी थे। इस दौरान शिशुपाल ने भगवान कृष्ण को बहुत अपमानित किया। जब पानी सिर के ऊपर चला गया तो भगवान कृष्ण को क्रोध आ गया भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल को खत्म करने के लिए अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा।

लेकिन शिशुपाल का सिर काटने के बाद जब चक्र भगवान श्री कृष्ण के पास लौटा तो उनकी तर्जनी उंगली में गहरा घाव हो गया. द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की उंगली को देखा और अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर भगवान कृष्ण की उंगली पर बांध दिया द्रौपदी के स्नेह को देखकर भगवान कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और द्रौपदी को वचन दिया कि वे हर स्थिति में हमेशा उनके साथ रहेंगे और हमेशा उनकी रक्षा करेंगे लक्ष्मी-राजा बलि की कथा। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया है. इस दौरान भगवान विष्णु ने वामन अवतार में असुरों के राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगा इसके लिए राजा बलि मान गया. वामन ने पहले ही पग में धरती नाप ली तो राजा बलि को समझ आया कि ये स्वयं भगवान विष्णु हैं राजा बलि ने भगवान को प्रणाम किया। राजा बलि ने इसके बाद वामन के सामने अगला पग रखने के लिए अपनी शीश को प्रस्तुत किया। इससे भगवान बहुत प्रसन्न हुए. भगवान ने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा। असुर राज बलि ने वरदान में भगवान को अपने द्वार पर ही खड़े रहने का वरदान मांगा। इससे भगवान अपने ही वरदान में फंस गए। ऐसे में माता लक्ष्मी ने नारद मुनि की सलाह ली माता लक्ष्मी राज बलि को राखी बांधी और उपहार के रूप में भगवान विष्णु को मांग लिया था।

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