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मात्तृभूमि विशेष
समझना कम न हम अहल-ए-ज़मीं को….
दिल्ली। इमरान प्रतापगढ़ी एक ऐसा नाम है कि जो इस नाम को जानता है वो इमरान क्या हैं और उनका व्यक्तित्व क्या है , इस बात से भी बख़ूबी वाक़िफ़ होता है। ‘हम जहाँ जाते हैं हंगामा पहुँच जाता है’।
इमरान जब तक शायरी की दुनिया में थे तब तक वहाँ एकछत्र राज किया। उनके पढ़ने के बाद मुशायरा ख़त्म हो जाता था। वो मुशायरों की ज़मानत थे। राजनीति में पहुँचे तो ऐसे–ऐसे शक्तिशाली मठाधीशों से सामना हुआ कि जो दो-चार नेता तो क्या पूरी की पूरी पार्टी खा जायें और हज़म कर जायें। कोई जान ही न पाये कि यही पार्टी खा गये हैं।
लेकिन नहीं, इमरान उस ज़मीन से आये थे जहाँ सूख जानेवाले पेड़ नहीं पैदा होते, जहाँ पैदा होनेवाला हर शख़्स अपना रास्ता ख़ुद बनाता है, जिसके हर मोड़ पर लिखा होता है कि ये रास्ता इमरान का बनाया हुआ है। जब कोई मंचों पर इमरान के जुमले दोहराता है या इमरान जैसा कुछ कहने की कोशिश करता है तो फ़ौरन पकड़ में आ जाता है, फ़ौरन औंधे मुँह गिर पड़ता है। इमरान सिर्फ़ इमरान नहीं, बल्कि एक ‘आइकॉन’ हैं। इमरान ने अपने सरोकारों से कभी समझौता नहीं किया। इमरान आज ज़िन्दा हैं तो किसी ‘अमृत महोत्सव’ का अमृत पीकर नहीं, बल्कि ख़ुद को खूराक बनकर ज़िन्दा हैं। हर मोड़ पर ख़ुद को खपाया है, ख़ुद को ख़र्च किया है, ख़ुद का लहू जलाकर गर्मी पायी और उसी से सरगर्मे-सफ़र हैं।
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प्रतापगढ़ के घोर पिछड़े इलाक़े से संसद तक का सफ़र किसी किताबी क़िस्से जैसा है, प्रतापगढ़ की सई नदी के किनारे बसे तेजगढ़ गाँव के किनारे से दिल्ली की जमुना के किनारे पहुँचना किसी तिलिस्मी जादू जैसा है, शायरी के अलफ़ाज़ पर सवार होकर संविधान की कार्यशाला तक पहुँचने की यात्रा कर्मठता का अनुपम उदहारण है।
आज से इमरान प्रतापगढ़ी माननीय इमरान प्रतापगढ़ी हो जायेंगे। वो करिश्माई नेता होने का उदाहरण हैं। जो उन्हें करिश्माई मानने को तैयार नहीं उन्हें आगे होनेवाले करिश्मों के लिए तैयार रहना होगा। उन्होंने ये सफ़र एक दिन में नहीं तय किया और न ही इसके लिए उन्होंने कोई शार्टकट अपनाया। जो लोग इमरान को दूर से नहीं, बल्कि नज़दीक से व्यक्तिगत स्तर पर जानते हैं वही जानते हैं कि इमरान कितने मेहनती, कितने जुझारू, कितने संघर्षशील और कितने कर्मठ हैं। चाहे मुशायरे का सफ़र रहा हो चाहे राजनीति का सफ़र, इमरान ने आज तक जिस तरह संघर्ष किया है वो अद्भुत है।
उत्तर प्रदेश की जिस सरकार ने इमरान को यश भारती दिया उसका शुक्रिया अदा करने के बाद इमरान ने कभी उसका दामन नहीं थामा। इसका कारण यही है कि उनकी नज़र में पूरा हिन्दुस्तान उनका है, वो सच्चे अर्थों में राष्ट्रवादी हैं। कांग्रेस पार्टी ने उन्हें अल्पसंख्यक विभाग दिया है, लेकिन वे सभी के लिए काम कर रहे हैं। वो महाराष्ट्र कोटे से राज्यसभा पहुँचे हैं, लेकिन वो काम इस महान राष्ट्र के लिए करेंगे।
कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी में स्थान बना पाना और वो भी राज्यसभा के माध्यम से, अपने आप में इसलिए भी कारनामा है कि लोकसभा में केवल जनता के प्रतिनिधि बैठते हैं, जबकि राज्यसभा में प्रतिनिधियों के प्रतिनिधि बैठते हैं। इसलिए इस सदन के सदस्यों के ऊपर दोहरी ज़िम्मेदारी होती है- जनता के प्रति और जनता के प्रतिनिधियों के प्रति भी। उम्मीद है इमरान इन दोनों ज़िम्मेदारियों पर खरे उतरेंगे। हमें ऐसे हीरो की ज़रुरत है जिसके बाप-दादाओं में से कोई हीरो ना रहा हो, हमें ऐसे हीरो की ज़रुरत है जो देखने-सुनने, बोलने-चलने में हमारे जैसा हो, जो अपनी ख़ुद लिखता हो, जो अपना रास्ता ख़ुद बनाता हो। बिस्मिल अज़ीमाबादी याद आते हैं-
रहरवे–राहे–मुहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़ते–सहरा नवर्दी दूरी–ए–मंज़िल में है